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Sunday, March 9, 2014

प्रतिनिधी और अवमानना

हिन्दुस्तानी लोकतंत्र में प्रतिनिधी शब्द की बहुत एहमियत है, प्रतिनिधी अर्थात जनता की वह आवाज जो संसद मे बैठ कर जनता की सोच को कानूनों और नीतियों के रूप मे पेश करती है! इन प्रतिनिधियों का दायित्व बनता है की जिस देश की नुमाइंदगी यह लोग कर रहे है उस देश की जनता के लिए बेहतर से बेहतर क्या हो सकता वह करें, पर यह सोच गठबंधन की घटिया राजनीति की बली चढ़ गयी! अगर एक मुख्यमंत्री और सत्ता दल मे शामिल मुख्य पार्टी के अध्यक्ष की यह सोच है की सिर्फ और सिर्फ "कम कीमतें" वोट बैंक की बुनियाद बन सकती है तो यह भारतीय लोकतंत्र के लिए काफी अफसोस जनक होगा की उसके प्रतिनिधी गुणवत्ता के महत्व से अपरिचित है या फिर सत्ता और वोट की खातिर देश की तर्रक्की तक से मूंह फेर सकते है! दिनेश त्रिवेदी के बजट पर तृणमूल कांग्रेस द्वारा मचाये गए हाय तौबा से उपरोक्त कही गयी बातें ही समझ मे आती है, दिनेश त्रिवेदी को इसलिए बली का बकरा बनना पड़ा क्योंकि उनके द्वारा रेल बजट में की गयी मामूली बढ़ोत्तरी ममता जी को उनके वोट बैंक मे डाके की तरह लग रही थी! लालू से लेकर ममता तक यह सोच नहीं बदली की लोग बढ़ी हुयी कीमतों से परेशान नहीं होते अगर बेहतर सुविधा या गुणवत्ता का वादा साथ मे किया जाए, और जितनी बढ़ोत्तरी त्रिवेदी के बजट मे की गयी थी उसे वापस ले लेने पर भी कोई खासा फर्क नहीं पड़ेगा हाँ बस जनता को फिर से मौका मिलेगा रेलवे की जर-जर होती व्यवस्था को कोसने का! ममता जी  को अब जल्द समझ लेना चाहिए की जिस देश की जनता की आवाज बन कर वह संसद में पहुंची है, उस देश की जनता को कच्चा लालच देने से ज्यादा लाभ उन्हें नहीं मिल पायेगा, जनता चाहती है बेहतर सुविधा, बेहतर गुणवत्ता अच्छा होगा वेह प्रतिनिधी होने का अर्थ समझे वरना विकल्प सरकार और लोगों दोनों के पास है!
                                      अब बात करूँगा अवमानना के विषये मे! हमारे सांसदों और विधायकों की गरिमा बहुत ही संवेदनशील है, बिलकुल भी सच सहेन नहीं कर पाते! यह सच भी है की अक्सर इंसान कुछ ऐसे काम कर जाता है जिसको वह खुद स्वीकार नही पाता, ऐसा ही कुछ हमारे सांसदों के साथ हुआ जब उन्होंने केजरीवाल के बयान पर विशेषाधिकार हनन नोटिस दायर कर दिया! इस कदम के बाद हम कह सकते है की सांसद मानना ही नहीं चाहते की 163 सांसदों के खिलाफ अपराधिक मामले चल रहे है, कभी कर्नाटक और कभी गुजरात विधान सभा मे यह प्रतिनिधी पोर्न के लुत्फ़ उठाते नजर आते है, वोट और नोट काण्ड भी संसद मे ही घटा इन्हें यह भी मालूम नहीं और भी ना जाने कितने मामलों से यह मूंह फेर लेते है विशेषाधिकार हनन नोटिस दायर कर के! खैर अच्छा ही है की केजरीवाल जैसे मंच आम जनता के पास उपलब्ध नहीं है वरना शायद हमारे सांसदों को ऐसा बहुत कुछ सुनने को मिल जाता जिसको सुन कर विशेषाधिकार की विशेषता खत्म हो जाती!

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