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Sunday, September 2, 2012

भारतीय सिनेमा के जन्म का पहला दशक 1930-40 (भाग-2)

फिल्मों का शुरुवाती दौर धार्मिक फिल्मों का दौर था! दादा साहब फाल्के फिल्मों की शुरुवात कर चुके थे और आने वाले समय में फिल्मे नए नए कीर्तिमान रचने वाली थी! फिल्मों के पहले दशक में मील का पत्थर साबित हुयी पहली बोलती फिल्म जिसके बिना आज की फिल्म इंडस्ट्री की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी! 1931 में "आलम आरा" क्रांति ले आई और फिल्मे बोलने लगी! इसके निर्देशक थे इम्पीरियल फिल्म कंपनी के मालिक अर्देशिर इरानी! इनका जन्म पुणे में हुआ! पूरा नाम था खान बहादुर अर्देशिर ईरानी! सन 1929 में  इन्होने एक बोलती अमेरिकन फिल्म देखी जिसका नाम था "मेलोडी ऑफ़ लाइफ" जो उनके लिए प्रेरणा बनी! वह अपने दो दोस्तों के साथ अमेरिका गए, तीन महीने साउंड फिल्म की ट्रेनिंग ली! 1930 में
फिल्म आलम आरा की शूटिंग शुरू की! इस फिल्म मैं उस समय के स्टार पृथ्वी राज कपूर, मास्टर जयराम विथल,  जुबैदा तथा एम् डब्लू खान ने काम किया! "दे दे खुदा के नाम पर बन्दे" पहला भारतीय सिनेमा का  गीत रहा!
इस दशक के महान किरदारों में  हिमांशु रॉय का नाम भी उल्लेखनीय है मुख्यतः "अछूत कन्या" के लिए जाना जाता है! चलिए इस दशक के इस महान व्यक्ति  के विषय में बात करते हैं! हिमांशु रॉय भारतीय सिनेमा से तब जुडे जब शुरुवाती दौर था, संघर्ष चल रहा था पर ये ऐसे पहले व्यक्ति साबित हुए जिसने भारतीय सिनेमा की विदेशों तक पहचान बनायीं! इनका जन्म बंगाल में  हुआ, घर का थियेटर होने के कारण हमेशा से इस कला से जुड़े रहे1 पिता ने वकालत पढने के लिए इंग्लॅण्ड भेजा पर वहां अलग अलग रंगमंच से भी जुड़े रहे! लंदन मई निरंजन पौल के नाटक "द  गोदेस" में  मुख्य भूमिका निभाई!2936 में अछूत कन्या रिलीज़ हुयी, यह उन शुरुवाती फिल्मो में से एक थी जिसने समाज की कमियां समाज के सामने रखी! यह कहानी थी एक पंडित लड़के और एक नीची जाती की लड़की की प्रेम की! हिमांशु रॉय की "द लाइट ऑफ़ द एशिया",  जिसमे महात्मा बुद्ध की कहानी कही गयी, विदेशों में खूब चली, 9 महीने चलकर इसने नया कीर्तिमान स्थापित किया! इसके बाद इन्होने जर्मनी की फिल्म कंपनी के सहयोग से शिराज नाम की फिल्म बनायी! इसके बाद 1929 में इंग्लॅण्ड  व जर्मनी की कंपनी की मदद से "अ थ्री ऑफ़ डायस" बनायीं! फिल्म पूरी होते होते फिल्म की नायिका  देविका रानी तथा हिमांशु रॉय पति पत्नी क बंधन में  बांध चुके थे! इतनी सफल फिल्मों से जो पैसा कमाया उससे  1934 में बॉम्बे टाकीज कि स्थापना की! अछूत कन्या का निर्माण बॉम्बे टाकीजके बैनर तले ही किया गया! इसमे बॉम्बे टाकीजके लैब सहायक अशोक कुमार को भी भूमिका अदा करने का मौका मिला! 6 वर्ष जितने कम समय में  बॉम्बे टाकीज न काफी नाम कम लिया पर इस से पहले की हिमांशु इसे नयी उचाईयों तक ले जा पाते 19 मई 1940 को सिर्फ 45 वर्ष की उम्र में  उनका निधन हो गया! क्रमश