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Saturday, December 10, 2011

एफ.डी.आइ से डर क्यों?



आखिर सरकार ने 51% एफ.डी.आइ  लागू कर ही दिया! पर इस पर मच रहा बवाल कुछ वैसा ही है जैसा  की 1991 में  नयी आर्थिक नीतियों को लागू करने से पहले देसी बाजार बर्बाद होने का  मुद्दा गरमाया था, आज जब देश की अर्थव्यवस्था चरमरा रही है और विकास की दर उठाने को लेकर हर कोई सरकार  से उम्मीद लगाये  बैठा है तो एफ.डी.आइ को लागु करने से पहले इतना हंगामा क्योंकिया जा रहा था! आखिर हम हर नयी शुरुवात से पहले इतना डर क्यों जाते है? कम्प्यूटर के भारत मे आने से पहले भी यही कहा जा रहा था की कप्यूटर से हर आदमी बर्बाद हो जायेगा, पर आज तस्वीर साफ़ है! जनता हूँ की एफ डी आई और कम्प्यूटर मे तुलना करना सही नहीं लगता पर मै बात सिर्फ नजरिये की कर रहा हूँ, जो की हर नई शुरुवात से डरी सी लगती है! खुद सोचिये 5 या 6 साल मॉल्स की संस्कृति को भारत मे पैर जमाये हो चुके है और अभी तक कोई किरियाने वाला बेरोजगार होता नहीं दिखा, तो यह कहना की इस से बेरोजगारी बढ़ेगी सही नहीं लगता! जैसे बर्गर  या पिज्जा  के आने से इडली  और डोसे  की मांग कम नहीं हुई वैसे ही मॉल्स के आने से किरियाने वालो की एहमियत कम नहीं होगी, बस होगा यह की लोगो को सस्ता और बढ़िया गुणवत्ता का सामन आसानी से मिल सकेगा और अर्थव्यवस्था का नियम है प्रतियोगिता उपभोक्ता के लिए लाभदायक होती है!  एक बात और की जब तब नकली घी या तेल के खुलासे सामने आते है तो वह मॉल्स में नही आम किरियाने की दुकानों मे होते है तो किसकी विश्वसनीयता ज्यादा है यह आप समझ सकते है! यह भी कहा जा रहा है की जैसे ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत पर कब्ज़ा कर लिया था वैसे ही यह कदम भी हम को गुलामी की ओर धकेलेगा, पर उस समय तो भारत पूरा एक भारत था ही नही, वह अलग अलग राजाओ का भारत था जहाँ अंग्रेजों ने राजाओं को लड़ा कर खुद को भारत का राजा बनाया, पर अब भारत मे लोकतंत्र है, राजा जनता से पूछ के काम नहीं करते थे पर आज जनता की चलती है अगर कुछ गलत होता दिखा भी (जो की नहीं होगा) तो हम उसको रोक सकेंगे हमारे पास मीडिया है, हर वह साधन है जो गलत को रोक सके तो मत डरिए! अंत मे बताना चाहूँगा की  जो सुविधाएँ एक किरियाने वाला देता है वह मॉल्स मे मिलना मुश्किल है! तो डरिये मत नयी चीजो को अपनाना सीखिए, और अपने देश में हर बात पर राजनीति खेली जाती है तो उस को भी समझना सीखिए! मेरे अनुसार एफ.डी.आई का स्वागत है!