कोई नेता गाँधी और अन्ना हजारे की तुलना बर्दाश नही कर पा रहा, यह मत सोचिये की यह गाँधी के आदर्शो से प्रभावित है या इन्हें राष्ट्रपिता का महत्व कम हो जाने का डर है, इतनी ही परवाह होती तो देश को डुबाने मे न लगे होते! असलियत मे डर इस बात का है की कही जनता फिर किसी को गाँधी या जयप्रकाश मान बैठी तो लेने के देने पड़ जाएँगे! वैसे भी गाँधी और जयप्रकाश जैसे लोग हमेशा सत्ता को लाइन पर लाने मे लगे रहते है, और हमारे नेता देश को सुधारने के लिए तो सत्ता मे आए नही है! खैर, जनता बहुत भोली है, वह फर्क नहीं समझ पाती, बस काम को देख फैसला कर लेती है की किसकी तुलना किस से करनी है! जैसे धोनी की तुलना कपिल देव से कर बैठी! हमारे नेता यह फर्क समझाने की हर संभव कोशिश करते रहते है पर वाजिब तर्क नहीं दे पाते! कहते है की गाँधी का दौर अलग था, परिस्तिथिया अलग थी, कहने का अर्थ बस यह समझिये की धोनी का वर्ल्ड कप जीतना तो बेकार गया क्योकि मुकाबला श्री लंका से था और कपिल जी ने वर्ल्ड कप इंग्लैंड से जीता था, परिस्थितियाँ अलग थी ना!! वैसे देखा जाये तो कुछ परिस्थितियाँ अलग तो थी, जैसे पहले संसद चोर चला रहे थे (जो छुप कर देश लूट रहे थे) अब संसद डाकू चला रहे है (हिम्मत से खुल्ले आम देश लूटते है) बेशक काफी काफी फर्क है! मुझे नहीं लगता कभी गाँधी पर किसी अंग्रेज ने संघ का मुखोटा होने का इल्जाम लगाया होगा (अब तर्क देंगे की तब संघ थी ही नहीं, पर मेरे कहने का मतलब तो आप समझ ही गाते होंगे) पर हमारे नेता हर वह काम कर सकते है जो किसी ने न किया हो! आज गाँधी जी भी ऊपर से देश को देख यही कहते होंगे- हे राम!!
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