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Monday, June 11, 2012

यह बेहतर कल का बहिष्कार है

सत्यमेव जयते द्वारा उठाये गए पिछले दो मुद्दों पर आई.ऍम .ए (Indian medical association) और खाप पंचायतों ने काफी हो हल्ला मचा रखा है, यदि इस हो हल्ले को गौर से देखें तो पाएंगे की यहाँ सत्यमेव जयते का नहीं एक बेहतर कल का बहिष्कार करने की बात कही जा रही है! सामाजिक बुराइयों को को समाज से आँखे मिलाने पर मजबूर कर रहा यह कार्यक्रम उन लोगों की आँख की किरकिरी बनता जा रहा है जो उन सामजिक बुराइयों का खुद एक हिस्सा हैं, और यह स्वाभाविक भी है!
                                                             इस सारे घटना क्रम पर एक कहानी याद आती है - बहुत समय पहले एक अत्याचारी राजा था, जो की अत्याचार करने के नए नए मौके खोजता रहता था! हर बार की तरह उसने अपनी प्रजा को एक  अजीबो गरीब फरमान सुनाया, उसने एक दरजी को ऐसी पौशाक बनाने को कहा जो पूरे राज्य में किसी के पास न हो! दरजी ने भी अपनी जान की खातिर एक चाल चली और राजा को हवा की  पौषक बना कर दी, जो दिखती ही नहीं थी! रजा खुश हुआ और पौषक पहन कर पूरे राज्य मे नंगा ही घूमने निकल पड़ा! रजा के अत्याचारों के कारण प्रजा की भी सच्चाई बताने की हिम्मत नहीं हुयी पर एक भोला बच्चा राजा  को देख अचानक बोल पड़ा की राजा तो नंगा है! कहानी का अंत तो मुझे याद नहीं पर वोह बच्चा फिर किसी को राज्य मे नहीं दिखा!  सत्यमेव जयते भी सरकार का नंगा पन उसे दिखने की कोशिश कर रहा है और यही कारण है की  अपराधों में शामिल इसका विरोध कर रहे है! आई.ऍम .ए की यह मांग की डॉक्टर समाज को बदनाम करने के लिए आमिर खान माफ़ी मांगे अजीब लगता है, आखिर क्यों न आई.ऍम .ए देश से माफ़ी मांगे की  अभी भी देश के हर राज्य मे जेनरिक दावा खाने नहीं है और लोग महंगी दवा लेने पर मजबूर है! क्या  आई.ऍम .ए इस बात को नज़र अंदाज कर सकता है की आज भी 33 हजार मुकदमे उपभोक्ता अदालतों मे लंबित है! इस तरह के जागरूकता अभियान का स्वागत करने की जगह इसका बहिष्कार करना खुद आई.ऍम .ए को संदिग्ध की सूची मे खड़ा करता है और कार्यक्रंम के अंत मई आमिर खान का कहना था की  आज भी कई डॉक्टर अपने कौशल का बेहतरीन उपयोग कर रहे है और युवा डोक्टरों को इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए  इसके बावजूद ऐसी बातें इस संस्था की साख को गिरती है क्योंकि कई बड़े डॉक्टर आमिर के कार्यक्रम को सही ठहरा चुके है! इसलिए इस पहल को जागरूकता के नजरिये से बढावा देने की जगह एक डॉक्टर समाज का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था द्वारा इसका बहिष्कार करने की बात करना मुझे बेहतर कल का बहिष्कार लगता है!
                            दूसरा मुद्दा है हरियाणा की खाप पंचायतों द्वारा कार्यक्रम के बहिष्कार का! अजीब बात यह है की बहिष्कार की बात ऐसी पंचायत के  तानाशाह कर रहे है जो न तो जनता द्वारा चुने गए है और न ही जिनका कोई कानूनी आधार है  और तो और जिनका भारतीय संविधान और न्याय व्यवस्था पर भी कोई विशवास नहीं है! इस तरह की प्रतिक्रिया  समाज से आना हमारी छ: दशक से विकसित हो रही सोच का दायरा काफी छोटा  कर देते है! अब सवाल खड़ा होता है की क्या हम सामाजिक बुराइयों को पहचानने के काबिल भी है या नहीं? आशा है समाज थोपी जा रही प्रथाओं और परम्पराओं के खिलाफ आवाज जरूर उठाएगा!

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