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Friday, May 11, 2012

जन जागरण का नया नाम सत्यमेव जयते, आलोचकों को मेरा जवाब!

सत्यमेव जयते की चौतरफ़ा तारीफों के बाद इसकी तारीफ में कुछ भी कहने को नहीं बचा है, किरण बेदी से लेकर फिल्म और धारावाहिक समीक्षकों तक ने इसे सराहनीय कदम के रूप में  परीभाषित किया है! पर कुछ आलोचक अभी भी है जो ना तो खुद कोई शुरूवात करने की हम्मत रखते है और दूसरों के द्वारा उठाये
जा रहे क़दमों को भी बिना तार्किक कारणों के धित्कार रहे है! ऐसे ही एक लेखक है केशव जी (blogger on navbharat times reader's blog) यह अपने लेख में फिल्मों के सामाजिक प्रभाव पर ही प्रशन चिन्ह लगा रहे है! यह फिल्मों को सिर्फ मनोरंजन भर का साधन मानते है और यह फिल्मों से इनकी दूरी को बयां करता है, हमेशा से फिल्मों और धारावाहिकों को समाज का आईना माना गया है और सत्यमेव जयते समाज को उसका
चेहरा दिखाने की एक मजबूत पहल है  माना जा सकता है! सत्यमेव जयते समाज की कुरीतियों के सागर में मारा गया सुधार रूपी कंकर है जिससे बदलाव की लहर जरुर बनेगी, या कह सकते है की बननी शुरू हो चुकी
है और इलाहबाद में  स्टिंग द्वारा कन्या भ्रूण हत्या में लिप्त एक डॉक्टर का खुलासा, भोपाल में कन्या भ्रूण ह्त्या के सम्बन्ध में नया क़ानून और राजस्थान के मुख्यमंत्री द्वारा हाई कोर्ट जज से फास्ट ट्रैक कोर्ट 
बनाने की मांग अपने आप में  बदलाव की शुरुवात है! ऐसे में फिल्मों और धारावाहिकों को सिर्फ मनोरंजन भर  का साधन कहना काफी छोटी सोच को दर्शाता है! केशव जी अपने लेख की शुरुवात में  सवाल पूछते है की क्या
इस से सामाजिक बुराइयां ख़त्म हो जायेंगी? तो जवाब है हां! कभी रजा राम मोहन राय या दयानंद सरस्वती
द्वारा भी सामजिक बुराइयों के खिलाफ जन जागरण की मुहिम चलायी गयी थी और आज अगर सती प्रथा या विधवा विवाह जैसी कुरीतियों में बदलाव हो सका तो यह उसी का नतीजा था! बदलाव एक आदमी द्वारा
हो सकता है जरुरी है इसके लिए दिल से प्रयास करना! केशव जी अपने लेख में आगे कहते है की आमिर खान
क्योंकि एक सम्रध वर्ग से सम्बंधित है इसलिए दहेज़ जैसी घटनाओं पर उन्हे आश्चर्य होना स्वाभाविक है! यह बात
लिखना इनकी अज्ञानता का सबूत खुद दे देती है क्योंकि कई सर्वे और सत्यमेव जयते में भी एक विशेषज्ञ
यह बात बता चुके है की दहेज़ और कन्या भ्रूण हत्या जैसी करतूत सम्रध परिवारों में जयादा देखने को
 मिलती है तो गरीब और अमीर का यहाँ सवाल ही नहीं उठता!यहाँ जरूरत है जन जागरण की और यही
काम कर रहा है सत्यमेव जयते! इसके बाद केशव जी आमिर खान के इस प्रयास पर ही सवाल उठाते है की 
वह ऐसा सुधारवादी कदम कैसे उठा सकते है क्योंकि वह  खुद तलाकशुदा है! यहाँ तलाक को बहुत ही गलत 
रूप से परिभाषित किया गया है इन्हें यह नहीं भूलना चाहिए की तलाक भारतीय क़ानून द्वारा उत्पीरण 
से बचने का एक साधन है ना की शोषण का हथीयार! अगर रीना दत्त के साथ कुछ भी गलत हुआ होता तो 
उनके पास कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का विकल्प मौजूद था पर उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया इसका मतलब
साफ़ था की उनकी सहमति से ही सब हुआ हो और किसी भी बात पर राय देने से पहले दोनों पक्षों को सुना 
जाना बहुत जरुरी होता है पर आमिर खान के तलाक के मुद्दे पर हम एक पक्ष को भी ठीक से नहीं जानते तो
ऐसी राय देना हास्यपद है! इनका मत है की इस तरह की पहल से एक प्रतीशत भी फर्क नहीं पड़ने वाला!
यदि इनकी जैसी सोच रखी  जाए सुच में कुछ नहीं बदल सकता, बदलाव के लिए आशावादी होना जरुरी है!
अगर ऐसी ही सोच पोलियो के खिलाफ भारत सरकार की होती तो आज भी हम पोलियो मुक्त देश की सूचि में  शामिल नहीं होते! अफ़सोस यही है की हम यह मान कर चलते है की कुछ नहीं बदल सकता और अकेले मेरे
प्रयास से तो बिलकुल नहीं पर ऐसा कुछ नहीं है बदलाव के लिए एक आदमी भी काफी होता है बस जरुरत है
इच्छाशक्ति की! मुझे केशव जी से कोई गिला नहीं है बस मतभेद है उनकी विचारधारा से जो कहती है की
मै समाज में  लगी आग नहीं भुझा सकता पर हर उस आदमी पर ऊँगली उठाऊंगा जो भुजाने की कोशिश
करेगा! कन्या भ्रूण हत्या जैसी घटनाएं ख़त्म होंगी अगर हम चाहेंगे तो! इस नयी जनजागरण की पहेल को मेरा सलाम!

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