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Thursday, April 19, 2012

नव सिंडिकेट खेमे का उदय और कांग्रेस के पतन की शुरुवात!

दिल्ली नगर निगम चुनावो मे साल की चौथी हार के साथ कांग्रेस ने हार का नया ही रिकॉर्ड बनाया है! उत्तर प्रदेश, पंजाब, गोवा और अब दिल्ली से आये इस जनादेश ने साफ़ कर दिया है की निकट भविष्य मे आने वाले चुनाव कांग्रेस के अनुमानों के एकदम उलट भी हो सकते है! वैसे यह नगर निगम चुनाव थे जहाँ गल्ली मौहल्ले के मुद्दे ज्यादा महत्व रखते है पर अपने मत का प्रयोग करते समय मतदाता सरकार के अन्य कृत्यों का भी ध्यान रखते है! किसी राष्ट्रीय पार्टी को यह बिलकुल नहीं भूलना चाहिए की ई.वी.एम् पर उसकी पार्टी का बटन दबाने से पहले मतदाता पूरी तस्वीर को (जो पार्टी के निर्णयों से बनती है) देखता है! निर्णय आने के बाद से लगभग हर मीडिया चैनल ने कांग्रेस की हार के पीछे के सभी कारणों की अच्छे से पड़ताल बखूबी कर ली है पर एक वजह कही न कही छुपी रह गयी! इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्री रहते एक महत्वपूर्ण घटना घटी थी और वह थी सिंडिकेट नेताओं का उदय! वह नेता जो खुद को जनता से ऊपर समझने लगे थे उन्हें इस शब्द से नवाजा गया था! उस समय कांग्रेस की खुश किस्मती थी की इंदिरा  गाँधी जैसा शक्तिशाली नेतृत्व कांग्रेस के पास था जिसने, कांग्रेस को दो भागों मे बाँट के ही सही, पर पतन से बचा लिया था! और आज फिर ऐसा ही खेमा कांग्रेस मे दिखाई दे रहा है जो की घमंड के नशे मे चूर है! इंदिरा गाँधी  के समय मे इन सिंडिकेट नेताओं की गिनती शक्तिशाली नेताओं मे होती थी पर फिर भी जीत इंदिरा गाँधी की हुयी थी और कुछ ऐसा ही हाल हाल फिलहाल  के चुनावो मे कांग्रेस के साथ फिर होता दिखाई दिया! लगभग अन्ना आन्दोलन के समय से ही एक नव सिंडिकेट खेमे का उदय होता दिख रहा था और इस साल मे कांग्रेस की हुयी पराजयों ने इसकी मौजूदगी साफ़ तरह से दर्ज करा दी है! इस नए खेमे के अलावा अफ़सोस इस बात का है की फिलहाल कोई मजबूत नेतृत्व कांग्रेस के पास दिखाई नहीं देता! मनमोहन सिंह को भी देश के सबसे ईमानदार प्रधानमंत्री से सबसे कमजोर प्रधानमंत्री के पद पर बहुत पहले ही  नवाजा जा चुका है! और राहुल व प्रियंका गाँधी ने चाहे जितने सपने जनता को दिखाने की कोशिश कर ली हो पर वह इस बात से अन्भिग्ये दिखाई दिए की बिना गीरेबान मे झांके उपदेश देने से किसी का लाभ नहीं होता! जैसा की मैं पहले दोहरा चुका हूँ की किसी भी हार के पीछे पार्टी के सभी कृत्ये अपनी भूमिका निभाते है या यह भी कह  सकते है की किसी पार्टी की हर करनी जनता को एक संदेश देती है और ऐसे संदेशों के आधार पर ही पार्टी की जीत और हार तय होती है, मेरी बातों का एक ही अभिप्राय है की कांग्रेस की हार की वजह खुद कांग्रेस ही रही है और यह तथ्य भी है कि चुनावों से पहले कांग्रेस से सम्बंधित विवाद ही उसको ले डूबे और ऐसे मे भाजपा के अलावा कोई और विकल्प जनता के पास नहीं था अर्थात इन सभी हारों के पीछे भाजपा की किसी सुन्हेरी व्यवस्था ने नही बल्कि कांग्रेस के गलत कृत्यों के संदेश वजह रहे! कांग्रेस की सबसे बड़ी उपलब्धि शिक्षा का कानून रही पर वास्तविक धरातल पर इसका होना या न होना एक सामान है और स्कूलों की मनमानियां पहले ही लोगो के गले की हड्डी बनी हुयी है! खाद्यये सुरक्षा क़ानून लागू करने से पहले इसे व्यवस्था मे दीमक की तरह लग चुके भरष्टाचार के विषय मे सोचना होगा और लोकपाल की जो हालत बनायीं गयी वह सरकार के भरष्टाचार के प्रति मंसूबो को साफ़ करती है और जनता लोकपाल के वर्तमान सरकार के रहते लागू होने के बारे मे अब सोचती भी नहीं है! अन्ना और रामदेव आंदोलनों के साथ जो हुआ उसने जनता तक यही संदेश पहुँचाया की इस सरकार की कहनी और करनी मे काफी फर्क है! दिनेश त्रिवेदी को केन्द्रमंत्री के पद से हटा कर सरकार पहले ही गठबंधन का रोना रो चुकी है इसके अलावा और किस उदाहरण की जरुरत है सरकार की मजबूरी दिखाने के लिए!
                                                                                         इस वक़्त कांग्रेस को समझने की जरूरत है की सत्ता मे रहने का यह मतलब नहीं होता की जैसे तैसे सत्ता मे ही रहा जाये बल्कि जनता के प्रतिनिधि के रूप मे जनता तक यह संदेश भी पहुँचाना होता है की उसके प्रतिनिधि उसकी उम्मीदों पर खरा उतर रहे है, और जब जब इस बात का ख्याल नहीं रखा जायेगा तब तब कांग्रेस को ऐसे जनादेशो के लिए तैयार रहना होगा! 

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