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Thursday, July 5, 2012

इन्हें धंधा न बनाएँ!

विश्वविद्यालयों में दाखिले की दौड़ जोरों पर है, साथ ही प्रसिद्ध कोर्सों के लिए विद्यार्थी कड़ी प्रतियोगिता का सामना कर रहे है, ऐसे में मेरा ध्यान दो महत्वपूर्ण कोर्सों की तरफ गया जो की केवल कोर्स मात्र नहीं है बल्कि इस से कई ज्यादा ऊपर हैं!
                               इन दो कोर्सों के विषये में आगे बात करता हूँ, उस से पहले एक आम धारणा की और ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा की आज लाखों की संख्या में छात्र  दाखिले की दौड़ में भाग लेते हैं और जाहिर सी बात है की दौड़ में जीतने का दबाव काफी भारी होता है, ठीक वैसे ही दाखिले की दौड़ में भी दाखिला पाने का दबाव काफी ज्यादा होता है  और जो दाखिला पा जाते हैं, वह भविष्य में अपनी इस दौड़ में  बहाए पसीने का मोल भारी पैकेज वाली नौकरियों के साथ बदलना चाहते हैं अर्थात कोई भी अपने चुने गए शेत्र में कामयाबी का मापदंड भारी पैकेज वाली नौकरियों या सिर्फ भारी लाभ को मानता हैं! आप मे से कई यह भी कहेंगे की इसमे गलत क्या है? मेहनत के बाद लाभ पर हमारा अधिकार है!
                                                पर जिन दो प्रसिद्ध शेत्रों  या कोर्सों की बात मै करने वाला हूँ उन पर यह भारी मुनाफा कमाने की धारणा लागू नहीं होनी चाहिए और इसे बदलने की जरूरत है! जरा सोचिये आपको तब किसकी सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है जब आपका शरीर काम नहीं करता मतलब की जब आप बीमार होते हैं? जवाब होगा डॉक्टर की !! और जरा सोचिये जब आप के साथ अन्याय होता है तो न्याय तक पहुंचाने वाला कौन होता है? वकील!! मै बात करूँगा इन दो महत्वपूर्ण शेत्रों  की जिनमे हजारों या लाखों की संख्या में विद्यार्थी दौड़ लगाते हैं  और कुछ चुनिन्दा खुश किस्मत और मेहनती सफलता पाते हैं! मेरा केवल इन दो शेत्रों को चुनने का कारण इनका मानव हित से सीधे जुड़ा होना है! कहा भी गया है की पहला सुख निरोगी काया तथा लॉस  जैसे महान विचारक का कहना था की बिना न्याय के कोई भी इन्सान बेहतर जीवन नहीं जी सकता! पर इन पेशों में कर्तव्य उस समय काफी पीछे छूट जाता हैं जब मेहनत और मुनाफे की अदला बदली का समय आता है!
                   क्या किसी मरीज का इलाज हो सकता है जब डॉक्टर को उसका मरीज मुनाफा कमाने का जरीया लगे, या किसी पीड़ित को न्याय मिल सकता है जब न्याय की गुहार लगा रहा व्यक्ति लाभ का स्त्रोत नजर आये! वास्तविकता यही है की हम ऐसी व्यवस्था में ही जी रहे हैं  जहाँ किसी की जरुरत किसी की रोटी कमाने का साधन है और ऐसी  व्यवस्था नैतिकता की बली चढ़ाती है! एक उदहारण से अपनी बात साफ़ करना चाहूँगा, मुझसे किसी ने पुछा की लादेन जब एबटाबाद में ही पकड़ा गया पर पाकिस्तान ने उसे पहले क्यूँ नहीं पकड़ा? मेरा जवाब था की पकिस्तान को लादेन को पकड़ने के लिए अमेरिका भारी आर्थिक मदद देता था और अगर  पाकिस्तान लादेन को पकड़ लेता तो यह भारी भरकम आर्थिक मदद ख़त्म हो जाती! मैं मुद्दे को भटका नहीं रहा हूँ सिर्फ दिखाना चाह रहा हूँ की कैसे लालच नैतिकता पर भारी पड़ जाता है! यह सभी बातें मेरी काल्पनिक थ्योरी नहीं है, सच है की कई लाख डॉक्टरो पर उपभोक्ता अदालतों में मुद्दे लंबित है, क्यूँ कोई डॉक्टर  महंगी दवाओं की जगह जेनरिक दवाओं को महत्व नहीं देता? आखिर क्यूँ अदालतों में क्यों केस कई पीड़ियों तक  चलते रहते हैं? क्या यह हमारी भायावह स्तिथि के परिणाम है? हमारी मजबूत होती पूंजीवादी सोच के साथ डॉक्टरों के लिए मरीज भी कस्टमर बन गए हैं, मैं पूंजीवाद का विरोधी कतई नहीं हूँ  सिर्फ इस चलन के प्रति चिंता व्यक्त  कर रहा हूँ! मेरा सवाल है की क्या कोई विकल्प है स्तिथियों को सुधारने का? क्या हमे कॉमन  एंट्रंस  टेस्ट में सुधार से पहले मूल भावना में सुधार की जरूरत नहीं है? सोचिये और जवाब खोजिये!    

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