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Saturday, September 1, 2012

भारतीय सिनेमा के जन्म का पहला दशक 1930-40 (भाग-1)

अधिकतर लोगों के मन में यह सवाल उठता है की आज इतना फल फूल रहे भारतीय सिनेमा की शुरुवात कैसे हुयी या उस समय में आई फिल्मो ने भी क्या समाज पर कोई प्रभाव डाला? आज इस लेख के माध्यम से मैं हिंदी सिनेमा के पहले दशक के बारे में बात करूंगा! हिंदी सिनेमा के इस दशक पर मैं मुख्य निर्देशकों पर सिलसिलेवार बात करता हुआ आगे बढूँगा! जिस तरह हमारा देश अलग अलग दौर से गुजरा, जो भी परिवर्तन हमारे समाज ने देखे उसे अपने तरीके से सिनेमा ने व्यक्त किया! इसके बीजारोपण की तिथि थी 7 जुलाई 1826, लुमिएर ब्रदर्स नमक दो फ्रांसिसीयों की फ़िल्म का प्रीमियर वाटसन ठेयेटर में  हुआ! इसमें 12 लघु फिल्मे दिखाई गयी जिनमे "अरायिवल ऑफ़ द ट्रेन", "द  सी बाथ" मुख्य थी! इसे करीब 200 लोगो ने देखा! इन सब से प्रभावित हो मणि सेठना नाम के भारतीय ने भारत का पहला सिनेमा घर खोला! जिस पर पहली फिल्म "द लाइफ ऑफ़ द क्रिस्ट" दिखाई गयी! यह फिल्म धुंडी राज गोविन्द फाल्के उर्फ़ दादा साहेब फाल्के ने भी देखी और इसी से प्रेरित हो कर  भारतीय सिनेमा की नीव रखी! यह फिल्म जीजस क्रीस्ट की जिंदगी पर आधारित थी और इसे देख वह समझ गए की भारतीय वेदों और पुराणों में ऐसी कई कथाएं है जिन्हें फिल्मों का रूप दिया जा सकता है! इनका जन्म 30 अप्रैल 1870 में  महाराष्ट्र में नासिक के करीब त्रिय्म्ब्केश्वर में  हुआ! फिल्मे बनाने का सपना देखना उसे करने से कहीं  ज्यादा आसान था क्योंकि तब तक किसी भारतीय ने फिल्म निर्माण जैसे पेचीदे कार्य को हाथ नहीं लगाया था इसके अलावा फिल्म तकनीक से अवगत होना भी बेहद जरुरी था! इन सब को प्राप्त करने के लिए वह इंग्लैंड चले गए और वापसी में एक कैमरा और प्रिंटिंग मशीन लेकर लौटे! अगली दुविधा यह थी की उस समय फिल्मों में पैसा लगाने को कोई तैयार नही था क्योंकि तब तक किसी को विश्वास नहीं था की  भारतीय भी फिल्म बना सकते हैं! इसे सिद्ध करने के लिए उन्होंने एक मटर के दाने को पौधे में विकसित होते हुए शूट किया इसका नाम था द  ग्रोथ ऑफ़ अ पी प्लांट! इसके बाद इन्हें आर्थिक सहायता देने के लिए कई हाथ आगे आये! पहली फिल्म राजा हरीशचंद्र के रूप में सामने आई! हरीशचंद् की भूमिका दाबके तथा तारावती की भूमिका सालुंके ने की क्योंकि  उस समय महिलाओं का फिल्म में काम करना आसान नहीं था! 17 मई 1913 को यह कोरोनेशन  थियेटर में  प्रदर्शित हुयी, और यह 8 सप्ताह चली! इसके बाद नासिक में इन्होने "भस्मासुर मोहिनी" बनायीं, यह फिल्म विफल रही! अगली फिल्म "सत्येवान सावित्री" बनायीं! इसके बाद यह अपनी तीनो फिल्मों को लेकर इंग्लॅण्ड चले गए! स्वदेश लौट कर "लंका दहेन" बनायीं ! अभी तक की सभी फिल्मे इनके खुद के बैनर टेल बनी थी पर इसके बाद खुच धनवान लोगो  द्वारा सांझे लाभ हानि का प्रस्ताव आने पर हिन्दुस्तान कंपनी का जन्म हुआ! इस कंपनी के बैनर तले "कृषण जन्म" बनायीं और इसके बाद कालिया मर्दन बनायीं! इनकी पहली और आखरी सवाक फिल्म "गंगावात्रण" थी! 19 फ़रवरी 1944 में  74 वर्ष कि उम्र में  नासिक के अपने घर में इन्होने आखरी सांस ली! आज भी दादा साहेब फाल्के अवार्ड फ़िल्मी शेत्र में दिए जाने वाला सबसे बड़ा अवार्ड है! क्रमश    

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