Total Pageviews

Sunday, March 9, 2014

असभ्य संस्कृति के रखवाले

हिन्दुस्तान मे अंग्रेजो ने यह कह कर शासन किया था की "भारतीय असभ्य होते है और हम इन्हें सभ्य बनायेंगे" यह बात उस समय के लोगो को सही नहीं लगी और लम्बे संघर्ष के बाद हमने अपना शासन अपने हाथो मे ले लिया इस उम्मीद के साथ की हम दिखा देगे की हमसे सभ्य कोई नही, पर आज मैं जब वर्तमान भारत को देखता हूँ तो अंग्रेजो की बातें और "असभ्य भारतीयों" का सिधांत मुझे गलत नहीं लगता! शायद असल मे हम सभ्यता से कोसो दूर है! मैं अपने साथ हुयी कुछ घटनाओ का जिक्र करूंगा और समझाने की कौशिश करूंगा की कैसे छोटी छोटी जगहों पर हम भारतीय लोग खुद को असभ्य दर्शाने से नहीं चूकते!
                                                                             पहली घटना कुछ ख़ास अजीब नहीं है और आप के साथ भी रोज घटती होगी! हम मे से बहुत से लोग बसों और मेट्रो जैसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तमाल करते है और एक साधारण सी समझ है की किसी ट्रेन या बस मे चड़ने से पहले जो लोग उतरना चाहते है उन्हें उतरने देना चाहिए! पर इस साधारण सी बात मे हम अपनी साधारण समझ खो बैठते है और धक्का मुक्की तो आम बात है, हालत तो यह है की पब्लिक ट्रांसपोर्ट मे बैठने से पहले हम यह सोच लेते है की धक्का मुक्की के लिए तैयार रहना होगा! ऐसी स्तिथि पश्चिमी देशो मे नहीं है, वहा सब्र से ट्रेनों और बसों का प्रयोग किया जाता है! शायद यही है हमारी सभ्य संस्कृति!
                                दूसरी घटना उस समय की है जब हमारे पड़ोस मे एक नया परिवार रहने आया, उनके आने के एक दो दिन बाद की बात है, मैं कॉलेज से घर आया ही था की मैंने देखा कुछ किन्नर उनसे नया घर लेने की ख़ुशी के रूप मे 11000 रूपये की मांग कर रहे थे, मांग कहना ठीक नहीं लगता यह कह सकता हूँ की उन्हें धमका रहे थे! 11000 रूपये कोई छोटी रकम नहीं होती ऐसे किसी रिवाज के बारे मे मैंने सुना भी नहीं था! कुछ देर बाद वह किन्नर अगले दिन आने की धमकी दे कर चले गए! इसके बाद जब हमने उन्हें यह सुझाव दिया की यदि यह कल भी तंग करे तो आप पुलिस मे कंप्लेंट करना पर उनके घर के एक बुजुर्ग ने कहा की ऐसा करना ठीक नहीं यह अपशकुन होता है और अगले दिन उन्होंने कुछ रकम दे कर किन्नरों को मना भी लिया! पर इस से यह बात मुझे समझ आई की अभी भी हम अपने अधिकारों को ले कर जागरूक नहीं है, कोई हमारे घर मे घुस कर हमे धमकता है और हम विरोध करने की जगह हाथ जोर कर अंधविश्वासों का पालन करते रहते है! यहाँ मुझे अपने देश की संस्कृति पर  गर्व नहीं होता, शर्म आती है!
                                                                       तीसरी घटना, कुछ समय पहले हमारे कॉलेज मे रक्तदान शिविर लगा था और उस दौरान मैंने कई लोगों को रक्त दान करते देखा जो की एक सुखद अनुभव था पर ऐसे लोगो की भी कमी नही थी जो ना तो खुद रक्तदान कर रहे थे और दूसरों को समझा रहे थे की यह ठीक नहीं है, इस से खून की कमी होती है (हालाँकि दान किये गए खून की आपूर्ति 24 के भीतर हो जाती है) और कुछ का कहना था की हमे घरवालो ने माना किया है! यह कितनी अजीब बात थी की यह वही कॉलेज के छात्र थे जो युवा होने का दम ख़म भरते है और रक्तदान के प्रति सचेत नहीं है! यहाँ मैंने देखा की अभी भी हमारा युवा जागरूक नही है, और शायद हिन्दुस्तान को खुद को युवा शक्ति कहने से पहले इन्हें जागरूक करना चाहिए! पश्चिमी देशो मे स्तिथि बिलकुल अलग है वहां सामजिक जागरूकता कई गुना ज्यादा है!
                                                                             चौथी घटना हाल ही मे मेरे साथ घटी, कॉलेज से घर आते वक्त देर हो जाने के कारण जल्दबाजी मे मैं महीलाओं की सीट पर बैठ गया और कुछ देर तक इस बात पर मेरा ध्यान भी नही गया, मेरा ध्यान इस ओर तब गया जब एक छोटी सी लड़की को मैंने मेरी और इशारा करते देखा, वह अपनी माँ से कुछ कह रही थी, मैंने गौर किया की वह अपनी माँ से कह रही थी की यह सीट महिलाओं की है पर उसकी माँ ने उसे चुप चाप खड़े रहने के लिए कहा! इस दौरान मे खुद खड़ा हो गया और उस लड़की को सीट दी! पर यह सोचता रहा की हमारे देश मे बचपन से ही बच्चों को अपने हकों की मांग ना करना सिखा दिया जाता है, अगर मे तब नही खड़ा होता तो शायद वह लड़की फिर कभी कहीं और अपने हक की चीज नहीं मांगती! और अपने देश मे दुसरे लोग हकों की कितनी चिंता करते है यह इसी बात से साफ़ था की मुझ से पहले किसी और ने किसी महिला के लिए सीट नहीं छोड़ी थी!
अंत मे कहूँगा की बेहतर होता अगर अंग्रेजो के राज मे हम थोड़ी सभ्यता सीख लेते! और जो, पश्चिमी सभ्यता की बुराइयां करते नहीं थकते उन्हें सोचना चाहिए की अभी क्या क्या सीखना बाकी है, वहां ट्रेन और बसों मे सफर करने का तरीका लोगो को पता है, सामजिक जागरूकता और अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता वहां  कई गुना ज्यादा है, वहां टूरिस्ट लोगो का सम्मान किया जाता है, "अतिथि देवो भवा" हमारा नारा है पर पालन वहां होता दिखाई देता है , जानवरों को घुमाने के बाद उनकी गन्दगी उनके मालिको द्वारा ही साफ़ की जाती है आदि आदि..!!!! और समझदार कह गए है की किसी से कुछ सीखने मे कोई बुराई नहीं है!

No comments: