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Monday, December 19, 2011

असमर्थ सुधार (unable to improve)


आज का विशेषांक शिक्षा से सम्बंधित है! सरकार ने भी शिक्षा के स्तर को बेहतर बनाने के लिए काफी समय से चली आ रही व्यवस्था मे क्रांतिकारी बदलाव किया! सुधारों का मकसद था शिक्षा को आसन बना कर छात्रों की उसमे रुचि पैदा करना और इसके लिए  सरकार ने शिक्षा व्यवस्था में नए सुधार किए और सी.सी.ई(Continuous and Comprehensive Evaluation) की शुरुवात की! बहुत समय से महसूस किया जा रहा था की शिक्षा व्यवस्था मे सुधार की आवश्यकता है, शिक्षा का अर्थ केवल अच्छे अंक लाना और किताबे रटना भर रह गया था! ऐसे मे सी.सी.ई एक बहुत ही अच्छा कदम था, इसका उद्येश्य था शिक्षित करना न की किताबी ज्ञान देना! इस व्यवस्था की सबसे बड़ी खूबी यही थी की छात्र को अंको के आधार पर न आंका  जाए बल्कि जो छात्र जिस किसी विषय मे बेहतर कर सकता है उसे उसमे बढ़ावा देना, चाहे वह खेल से सम्बंधित हो, संगीत से, नृत्य से या किसी अन्य विषय से! ऐसी व्यवस्था इस से पहले नहीं अपनाई गई थी जहाँ किताबो से ज्यादा ध्यान छात्र की रूचि पर दिया जाए! इन सब बातों के आधार पर कहा जा सकता है की यह एक सुन्हेरी व्यवस्था थी, पर जिस प्रकार के परिणाम की उपेक्षा की गयी थी वेसे परिणाम बीते सालों  मे देखने को नही मिले, कारण साफ़ था की इस व्यवस्था को उस तरह से नहीं लागू किया गया जिस तरह से किया जाना था! जैसा की अक्सर हिन्दुस्तान में कागजों पर बनायी गयी योजनायें वास्तविक धरातल पर बिलकुल ही अलग तरह से कार्यान्वित होती है वैसा ही कुछ इस नयी शिक्षा प्रणाली के साथ हुआ!
                                        इस व्यवस्था मे अध्यापको से उम्मीद की गई थी की वह कुछ नए तरीको से शिक्षा को दिलचस्प बनाने की कोशिश करेंगे, इसके लिए सीबीएसई ने सुझाव भी दिया की पढाई के अलावा कुछ अन्य विषयों पर छात्रों को साथ काम करने के लिए प्रेरित किया जाये ताकि वह किताबो के अलावा अन्य ज्ञान भी ले और साथ टीम मे काम करना भी सीखे और साथ ही यह भी कहा की ऐसे काम स्कूलों मे अध्यापको के प्रत्यक्ष नेतृत्व मे करवाए जाए, पर इस पर इस तरह से अमल नहीं किया गया! आम तोर पर देखा जा सकता है की अध्यापको ने काम को सरल बनाने के लिए घरों पर परियोजना कार्य करने को दिए ताकि ओपचारिकता पूरी हो जाए की अध्यापकों ने परियोजना कार्य पूरे करवा लिए है, परियोजना कार्य भी ऐसे दिए जाते है जिसमे किसी तरह की रचनात्मकता नहीं होती, अब बस फर्क यह रहा की पहले जो छात्र कितोबो की बातें अपनी कापियों मे लिखते थे वही अब फाईलों मे लिखने लगे! इस तरह जो व्यवस्था छात्रों का बोझ कम करने के लिए बनायीं गई थी उसी ने छात्रों का काम दो गुना कर दिया! आम तोर पर यह भी देखा गया की जो छात्र इस तरह के परियोजना कार्य करना नहीं जानते या समझ नहीं पाते उन्होंने अपना काम दुकानों से करवाना शुरू कर दिया, जिस से ज्ञान मे बढ़ावा होने की जगह माँ बाप के खर्चो मे बढ़ावा हुआ! इस के आलावा सीबीएसई का सुझाव था की छात्रों को उनके शोंक के मुताबिक़ काम करने के लिए प्रेरित किया जाए, पर स्कूलों ने इसमे भी खाना फुर्ती ही की, एक्स्ट्रा करिकुलर एक्तिविटिस के नाम पर एक या दो प्रोग्राम अपने स्कूलों मे शुरू करवा के सभी छात्रों को उसमे भाग लेने के लिए मजबूर किया, चाहे वह इसमें रूचि रखते हो या नहीं! इस सब कमियों के अलावा निजी स्कूलों ने सभी नियमों को ताक़ पे रख कर उन छात्रों को (जो अपने स्कूल मे बोर्ड की परीक्षा के लिए बैठते है)  पहले ही प्रशन पत्र उपलब्ध करवाना शुरू कर दिया है ताकि वह अपने स्कूल का रिकॉर्ड बेहतर बना सके! और सबसे हैरानी वाली बात यह है की इन सबके खिलाफ  शिकायत करने की भी कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं की गयी है! इस तरह जो व्यवस्था सुधार के लिए बनायीं गयी थी उसने व्यवस्था और ख़राब कर दी! इसमें जल्द से जल्द सुधार किया जाना चाहिए!!

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