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Sunday, August 5, 2012

निराशावादी आशावाद से दूर रहे! (अन्ना आंदोलन)

हिन्दुस्तान में जब कोई किसी मुद्दे के प्रति खुद को बेबस महसूस करता है तो परिस्थितियों से लड़ने की जगह हम खुद को कोई ना कोई तसल्ली दे कर मुद्दे से बिल्कुल अलग कर लेते है! ऐसा ही कुछ मुझे पिछले दिनो टीम अन्ना के आंदोलन में लोगो के रवैये तथा मीडिया चैनलों के साथ होता दिखाई दिया! टीम अन्ना के सदस्यों ने जब पिछले दिनो अनशन की शुरूवात की तो मीडिया चैनलों में इस आंदोलन को फेल करार देने की होड़ सी लग गयी! जब इस मुद्दे पर लोगो से मैने बातचीत की तो पाया की लोगो का नज़रीया भी रातों रात मीडिया चैनलों की ख़ास पेशकशों के अनुरूप बदल गया है! लोग अब लड़ने से कतरा रहे थे और एक बात लगभग हर किसी ने दोहराई की लोकपाल क़ानून से तो भ्रष्टाचार ख़तम नही होगा, इसके लिए तो लोगो को ही ईमानदार बनना पड़ेगा! यह बात एक बार को आप को धोखे में डाल सकती है और इस तरह की तसल्ली दे कर लोग आगे की लड़ाई लड़ने से माना भी करने लगे थे पर ऐसी तस्सल्ली एक तरह के निराशावादी आशावाद के समान है जिसमे यह आशा तो है की लोग इमानदर बनेगे पर जब इसका विश्लेषण वास्तविक धरातल पर करेंगे तो नतीजे निराशावादी पाएँगे! इस कथन को यदि हम गहराई से देखे तो पाएँगे की यह सारा इल्ज़ाम लोगो पर डाल देता है की लग भ्रष्ट है और जब तक वह नही सुधरेंगे लोकपाल का भी कोई लाभ नही होगा! एक उदाहरण के साथ इस कथन को समझने में और आसानी होगी, यह कथन कहता है की कोई अगर राशन कार्ड बनवाने जाता है तो वह सरकारी बाबू को कहेगा की में राशन कार्ड तभी लूँगा जब आप मुझसे घूस लेंगे!!! क्या यह वास्तविकता लगती है?नही!!!! कोई भी खुशी से घूस नही देता और ख़ास तोर पर भारतीय तो एक अधिक रुपया ना खर्चे! आम आदमी को मजबूर किया जाता है भ्रष्ट बनने पर क्यूंकी ईमानदारी से काम करवाने के सारे रास्ते उसके लिए बंद कर दिए जाते है! भ्रष्ट बनने पर मजबूर करता है सरकारी अफ़सर जो यह सोच कर अपनी नौकरी करता है की ज़मीन और आसमान एक हो सकते है पर मेरी नौकरी पर कोई आँच नही आ सकती! इन सब तर्को के बाद भी काई लोगो का कहना था की आम आदमी इनके आगे झुक क्यूँ जाता है? यह भी एक उलझा देने वाली तसल्ली है जिसकी हक़ीकत एक और उदाहरण से सॉफ हो सकती है! किसी परिवार में एक बच्चा बीमार हो जाता है पर सरकारी डॉक्टर इलाज से पहले घूस की माँग करता है तो वह व्यक्ति उस समये ईमानदारी की खोखली बाते करे या अपने बच्चे का इलाज करवाए! यह एक नही ऐसे ही हज़ारो उदाहरण उपलब्ध है यह बताने के लिए की वास्तव में एक आम आदमी इमानदर ही होता है उसे भ्रष्ट सरकारी अफ़सर बनाते है या मजबूर करते है1 और ऐसा इसलिए है की लोकपाल जैसे मजबूत क़ानूनो का आभाव इस देश में आज़ादी से है! कुछ दिन बाद अन्ना आंदोलन में भीड़ बाद गयी और मीडिया कुछ शांत हुई पर जब सरकार का रुख़ नकारात्मक रहा तो अन्ना को राजनीति में आने की घोषणा करनी पड़ी पर मीडिया अचानक "16 महीनो में आंदोलन की मौत" जैसे कार्यक्रम दिखाने लगा! क्या अन्ना का राजनीति में आना ग़लत है ? क्या मीडिया का मानना है की राजनीति मात्र अपराधिक छवि वालो के लिए है? इस पूरे आंदोलन में मीडिया की छवि विवादस्पद रही, जहाँ यह चैनल अपने पोल द्वारा यह घोषणा कर रहे थे की 96% लोग अन्ना के राजनीति में आने से सहमत है, वही आंदोलन की मौतजैसी ख़बरे दिखा रहे थे! क्या यह सरकारी दबाव में किया गया? साधारण तोर पर मीडिया से यह उमीद की जाती है की वह जन हित में बात करे पर इस दौरान मीडिया खुद संदःपूर्ण स्तिथि में था! समये है की लोग अपनी ज़िम्मएयदारी को समझे और मीडिया के अनुसार अपनी सोच परिवर्तित ना करे!

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